समर्पित और संघर्षशील साहित्यकार श्रीकृष्ण सरल

इंडिया एज न्यूज नेटवर्क
दुनिया में सबसे अधिक महाकाव्य लिखने वाले, बलिपंथी शहीदों के चरित-चारण, राष्ट्र भक्ति के दुर्लभ-दृष्टान्त स्वरूप जीवित शहीदों से सम्मानित, तरुणाई के गौरव गायक जिनकी कविता का एक-एक शब्द मन में देशभक्ति की अजस्र ऊर्जा भर देता है। स्वतंत्रता संग्राम की महत्त्वपूर्ण किन्तु अत्यंत सरल और अचर्चित इकाई का नाम हैं प्रो.श्रीकृष्ण सरल।
श्रीकृष्ण सरल उस समर्पित और संघर्षशील साहित्यकार का नाम है, जिसने लेखन में कई विश्व कीर्तिमान स्थापित किए हैं। सर्वाधिक क्रांति-लेखन और सर्वाधिक महाकाव्य (बारह) लिखने का श्रेय सरलजी को ही जाता है।
श्रीकृष्ण सरल (1 जनवरी 1919 ई० – 2 सितम्बर 2000) एक भारतीय कवि एवं लेखक थे। भारतीय क्रांतिकारियों पर उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें पन्द्रह महाकाव्य हैं। सरल जी ने अपना सम्पूर्ण लेखन भारतीय क्रांतिकारियों पर ही किया है। उन्होंने लेखन में कई विश्व कीर्तिमान स्थापित किए हैं। सर्वाधिक क्रांति-लेखन और सर्वाधिक महाकाव्य (पन्द्रह) लिखने का श्रेय सरलजी को ही जाता है। उनके द्वारा भारतीय सैनिकों की बलिदानी परमपराओं का स्मरण कराते राष्ट्रवादी काव्य के लिए उन्हें ‘युग-चारण’ भी कहा जाता है। उनके द्वारा रचित ‘मैं अमर शहीदों का चारण’ हिंदी भाषा की एक लोकप्रिय कविता है।
मध्य प्रदेश की साहित्य अकादमी द्वारा श्रीकृष्ण सरल के नाम पर कविता के लिए ‘श्रीकृष्ण सरल पुरस्कार’ प्रति वर्ष प्रदान किया जाता है।
सरल जी के सुदूर पूर्वज जमींदार थे। अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए विद्रोही के रूप मे मारे गये और फाँसी पर लटका दिये गये, ग्राम-वासियों की मदद से एक गर्भवती महिला बचा ली गयी थी उसी महिला के गर्भ से उत्पन्न बालक से पुन: वंश वृद्धि हुई। उसी शाखा में 1 जनवरी 1919 को सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में मध्य प्रदेश के गुना जिले के अशोक नगर में हुआ। इनके पिता का नाम श्री भगवती प्रसाद तथा माता का नाम यमुना देवी था। सरल जी शासकीय शिक्षा महा विद्यालय, उज्जैन में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रहे। वे स्वयं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे तथा अध्यापक के पद से निवृत्त होकर आजीवन साहित्य-साधना में रत रहे। उन्हें विभिन्न संस्थाओं द्वारा ‘भारत गौरव’, ‘राष्ट्र कवि’, ‘क्रांति-कवि’, ‘क्रांति-रत्न’, ‘अभिनव-भूषण’, ‘मानव-रत्न’, ‘श्रेष्ठ कला-आचार्य’ आदि अलंकरणों से विभूषित किया गया।
जीवन पर्यन्त कठोर साहित्य साधना में संलग्न प्रो०सरल जी 13 वर्ष की अवस्था से ही क्रांति क्रांतिकारियों से परिचित होने के कारण शासन से दंड़ित हुए। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन से प्रेरित, शहीद भगतसिंह की माता श्रीमती विद्यावती जी के सानिध्य एवं विलक्षण क्रांतिकारियों के समीपी प्रो. सरल ने प्राणदानी पीढ़ियों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अपने साहित्य का विषय बनाया। वे स्वयं को ‘शहीदों का चारण’ कहते थे। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं. बनारसीदास चतुर्वेदी ने कहा- ‘भारतीय शहीदों का समुचित श्राद्ध श्री सरल ने किया है।’ महान क्रान्तिकारी पं. परमानन्द का कथन है— ‘सरल जीवित शहीद हैं।’
श्रीकृष्ण सरल स्वयं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे तथा अध्यापक के पद से निवृत्त होकर आजीवन साहित्य-साधना में रत रहे। उन्हें विभिन्न संस्थाओं द्वारा ‘भारत गौरव’, ‘राष्ट्र कवि’, ‘क्रांति-कवि’, ‘क्रांति-रत्न’, ‘अभिनव-भूषण’, ‘मानव-रत्न’, ‘श्रेष्ठ कला-आचार्य’ आदि अलंकरणों से विभूषित किया गया।
जीवन के उत्तरार्ध में सरल जी आध्यात्मिक चिन्तन से प्रभावित होकर तीन महाकाव्य लिखे— तुलसी मानस, सरल रामायण एवं सीतायन। प्रो. सरल ने व्यक्तिगत प्रयत्नों से 15 महाकाव्यों सहित 124 ग्रन्थ लिखे उनका प्रकाशन कराया और स्वयं अपनी पुस्तकों की 5 लाख प्रतियाँ बेच लीं।
श्री सरल ने एक सौ सत्रह ग्रंथों का प्रणयन किया। नेताजी सुभाष पर तथ्यों के संकलन के लिए वे स्वयं खर्च वहन कर उन बारह देशों का भ्रमण करने गए, जहाँ-जहाँ नेताजी और उनकी फौज ने आजादी की लड़ाइयाँ लड़ी थीं। क्रान्ति कथाओं का शोधपूर्ण लेखन करने के सन्दर्भ में स्वयं के खर्च पर 10 देशों की यात्रा की। पुस्तकों के लिखने और उन्हें प्रकाशित कराने में सरल जी की अचल सम्पत्ति से लेकर पत्नी के आभूषण तक बिक गए। पाँच बार सरल जी को हृदयाघात हुआ पर उनकी कलम जीवन की अन्तिम साँस तक नहीं रुकी।
महाकाल की नगरी उज्जैन में साहित्य साधना की अखंड ज्योति जलाते हुए 2 दिसम्बर 200 को इस संसार से विदा हो गये।